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Monday, 13 March 2023

'इंतिज़ार' करते शायरों के अल्फ़ाज़

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
- अल्लामा इक़बाल


ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
- मिर्ज़ा ग़ालिब


ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ
तू आ के जा भी चुका है मैं इंतिज़ार में हूँ
- मुनीर नियाज़ी


कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
- गुलज़ार 

न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
- फ़िराक़ गोरखपुरी 


जान-लेवा थीं ख़्वाहिशें वर्ना
वस्ल से इंतिज़ार अच्छा था
- जौन एलिया 

तेरे आने की क्या उमीद मगर
कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं
- फ़िराक़ गोरखपुरी  


वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
- परवीन शाकिर 

हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया
- गुलज़ार 


वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा
तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं
- फ़रहत एहसास 

बस एक शाम का हर शाम इंतिज़ार रहा
मगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई
- अजमल सिराज


कहीं वो आ के मिटा दें न इंतिज़ार का लुत्फ़
कहीं क़ुबूल न हो जाए इल्तिजा मेरी
- हसरत जयपुरी

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