जब शायद मैंने उनके आंसुओ के दरिया में अपना चेहरा देखा था
उनकी आंसु एक अलग कहानी बता रही थी
शायद कहीं वो मुझे बेवकूफ बना रही थी
एक ख़ालिश नजर की खातिर उम्मीद लगा बैठा
मैं अपने दौर का खड़ा सिक्का, अब खोटा बन बैठा
जो कोई न बुझा सके, एक ऐसी तापीस है सीने में
खुदा अब खुद के मौत का ही फरमान है लबो मे
कहानी पता नहीं कब रुकेगी
ये जिंदगी मौत के हाथों कब बिकेगी
अब उम्मीद की ख्वाहिश से भी डर लगता है
किसी से कुछ कुछ कहने को भी डर लगता है
ऐ खुदा बंद कर दे मेरी बेबसी का किताब
मैं अकेला ठीक हूँ मत कर उम्मीद का सैलाब
Mohd Mimshad
No comments:
Post a Comment