हम सही हैं ये बताने में
क्यूँ सहते रहते हैं दूसरों का ज़ुल्म
आख़िर क्यूँ, हासिल की थी हमने ये ईल्म
गलती क्या है हमारी
सजा क्यूँ हो रही है हमें
क्या तू ये नहीं जानता
कि कितनी सच्चाई है तुझ में
फिर क्यूँ डर जाते हैं हम खुद को बताने में
जनता हूँ कि सच्चाई करवी होती है
लेकिन ज़हर हमेशा मेरे हिस्से ही क्यों आता है
क्या ज़ुल्म सहना,
ज़ुल्म करने से बड़ा गुनाह नहीं
फिर आखिर क्यों डर जाते हैं हम गुनाहों से बचने में
ऐ खुदा तू बता क्या तेरी यही रज़ा है
ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाना,
क्यों एक सज़ा है
समाज साथ देना क्यूँ नहीं चाहता
ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ बुलंद करना क्यूँ नहीं चाहता
ऐसे सवाल तो बहुत हैं
ऐसे सवाल तो बहुत हैं
फिर भी मैं क्यु डर जाता हूँ सवाल करने में
मोहम्मद मिमशाद
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