अपने सपनों के खातिर वो अपनो को पीछे छोड़ आता है
नए शहर के छोटे से कमरे को वो आशियाना बनाता है
घर पर आलीशान बिस्तर पर हमेशा सोने वाला
अब नए शहर में कठोर ज़मीन पर करवटें बदलता है
छात्र कविता नहीं अपना यथार्थ लिखता है
घर के स्वादिष्ट खाने में हमेशा नुक्स निकालने वाला
आज सिर्फ कच्चे चावल-रोटी खा कर सो जाता है
दस बजे उठने वाला अब चिड़ियों से भी पहले जाग जाता है
सुबह उठकर हर रोज अनेक समस्याओं से छात्र टकराता है
फिर भी सबसे मुस्कुराकर अपना दर्द छिपाता है
छात्र कविता नहीं अपना यथार्थ लिखता है।
हर रोज़ कलम उठाकर क्रांति करने का प्रण ये छात्र लेता है
पर पढ़ते-पढ़ते अपने भविष्य की चिंताओं में खो जाता है
कब तक घर से पैसे लेगा ये सोच वो विकल हो जाता है
एक नौकरी पाने के खातिर छात्र हर रोज जोर लगता है
छात्र कविता नहीं अपना यथार्थ लिखता है।
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