प्रकति की इस चिर पहचान में
नया है रथ नया है रास्ता,
चलने का सूरज को भी है वास्ता
रुकता नहीं चाँद भी जाड़े के सर्द दिनों में,
छोड़ते नहीं आशा चकवा अपने गमों में
इक आशा है जिंदगी,
इसी के सहारे चलती है ज़िंदगानी
क्योंकि सब जानते हैं दिन आएगा,
और होगी रात की रवानगी
चलते रहो चलते रहो
चलना ही ज़िंदगी है
और अब भी बैठे रहे तुम उदास
तो ये मानव जाति के लिए शर्मिंदगी है।
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