क्यों ऐसे हालात नहीं
मैं भी मैं हूंँ, तू भी तू है, क्या ऐसा था जो बदल गया
कश्ती तो काबू में थी, क्यों हाथ से साहिल फिसल गया
जब रातें छोटी पड़ जाती थी, वह सपनों की बारात नहीं
क्यों ऐसे हालात नहीं
क्यों तू मेरे साथ नहीं
तू मुझ में है ,मैं तुझ में हूंँ, एक दूजे में रहते हम
तू मेरा गम ,मैं तेरा गम ,एक दूजे का सहते गम
यहां भी रिमझिम वहां भी रिमझिम, बेशक अब बरसात नहीं
क्यों ऐसे हालात नहीं
क्यों तू मेरे साथ नहीं
ख्वाबों में ही मिलते हैं, रूबरू, जमाना बीत गया
तू भी हारा, मैं भी हारी, कोई और ही जीत गया
जिनमें हम डूबे रहते थे, क्यों अब वो जज्बात नहीं
क्यों ऐसे हालात नहीं
क्यों तू मेरे साथ नहीं
ना तू भूला,ना मैं भूली, उन पनघट वाली बातों को
तुझे मैं ढूंढूं मुझे तू ढूंढे, हम ढूंढ रहे जज्बातों को
जब चांद भी शरमा जाता था, वह पूनम वाली रात नहीं
क्यों ऐसे हालात नहीं
क्यों तू मेरे साथ नहीं
क्यों ऐसे हालात नहीं
-देवेन्द्र
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