तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।
जब हिलते नही लब, और दिल मे होती कुछ कसक।
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।
जब नैनों से न हो बात, और मुस्काते जब अधर।
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।
जब करनी हो गुफ़्तगू, और लफ्ज़ों से मिलते न हो हल।
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।
जब विरह मे हो मिलन, और अल्फाज ठहर जायें।
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।
जब भाव हो प्रबल, और कुछ कहने को मचले मन
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।
जब कीर्ति की हो लेखनी, और स्याही बिखर जाये।
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।
- डॉ.कीर्ति
No comments:
Post a Comment