दूसरों से तो खूब सुना है कुछ तु भी सुना ना
मालूम है मुझे तू अपनी तारीफ़ ही करेगा
खुद को आराम बताकर मौत के फैसले सुनाएगा
तू बता ना क्या है तेरी जुस्तजू
जवानी का ख्वाब दिखाकर छीन लिया बचपन का हर सू
जवानी में भी तू बड़ा इठलाया
बुढ़ापे का रूप दिखाकर बड़ा डराया
ऐ ज़िंदगी क्या वहम तुने है फैलाया
तकलीफ़ खुद देकर कसूरवार मौत को ठहराया
क्या कसूर है इन बच्चों की
जिसे तुने बस अपना एक झलक दिखाया
इतनी बड़ी बीमारियों में मुबतला कर
खेल कूद से मायूस किया
तू ज़रा हिसाब उन जवानों की भी तो दे
मेहनत करना सिखाया फिर मोहताज बना दिया
हक़दार तेरे तो सब ही है बराबर
फिर क्यों तुने सबकी कद्र न की
मैं तुझसे सबका हिसाब लूँगा
तुझे गुलाम बनाकर अपने कदमो में झुकाउंगा
Farhad तू तारीफ़ करेगा इसकी वो अमीरों के हिस्से जाएगा
गरीबों के सुकूं में सिर्फ़ कब्र का बिस्तर ही आएगा
Mohd Mimshad
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