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Wednesday, 24 May 2023


राहे सब़ाब है 
महफ़िले शराब है 
खैर व बरकत चार यारों की 
फिर क्या शाम है  ??
फिर क्या जाम है  !!

Sunday, 21 May 2023


गुजर जायेगा ये दौर भी Ghalib
जरा सा इतमिनान तो रख 
जब खुशियाँ ही नहीं ठहरी 
तो गम कि क्या ही औकात है 

Saturday, 20 May 2023


बारिश से दोस्ती अच्छी नहीं Faraz
कच्चा तेरा मकान है कुछ तो ख्याल कर 


मेरे बराबर कल भी न थे तुम 
औकात तुम्हारी आज भी नहीं है 
गर समझते हो खुद को शहंशाह तुम 
यक़ीन मानो badshahat आज भी मेरे पास ही है 

ज़िंदगी गरीब के हिस्से की

ऐ ज़िंदगी तेरा क्या कहना !!
दूसरों से तो खूब सुना है कुछ तु भी सुना ना

मालूम है मुझे तू अपनी तारीफ़ ही करेगा 
खुद को आराम बताकर मौत के फैसले सुनाएगा 

 तू बता ना क्या है तेरी जुस्तजू 
जवानी का ख्वाब दिखाकर छीन लिया बचपन का हर सू

जवानी में भी तू बड़ा इठलाया 
बुढ़ापे का रूप दिखाकर बड़ा डराया 

ऐ ज़िंदगी क्या वहम तुने है फैलाया 
तकलीफ़ खुद देकर कसूरवार मौत को ठहराया 

क्या कसूर है इन बच्चों की 
जिसे तुने बस अपना एक झलक दिखाया 

इतनी बड़ी बीमारियों में मुबतला कर 
खेल कूद से मायूस किया 

तू ज़रा हिसाब उन जवानों की भी तो दे 
मेहनत करना सिखाया फिर मोहताज बना दिया 

हक़दार तेरे तो सब ही है बराबर 
फिर क्यों तुने सबकी कद्र न की 

मैं तुझसे सबका हिसाब लूँगा 
तुझे गुलाम बनाकर अपने कदमो में झुकाउंगा 

Farhad तू तारीफ़ करेगा इसकी वो अमीरों के हिस्से जाएगा 
गरीबों के सुकूं में सिर्फ़ कब्र का बिस्तर ही आएगा 


Mohd Mimshad

Friday, 19 May 2023

Jahiliyat ko teri kisne jana
Haiwaniyat ko teri kisne pahchana
Tu samjta hai teri aashiqui behtr hai
Tu raquib hai mera ....
Sabne tujhe achcha jana


सुना है बहुत रश्क है तुम्हारे मोहल्ले में 
तेरी जुल्फों का क़हर अभी भी है क्या  ?


तुम्हें मेरा शारीफी देखना है........!!
आओ मेरे मैख़ाने पर 
सुकून से बात होगी
 

Sarafat ka jamana gaya sahab
Ab hum badgumani me yakin rakhte hain

Thursday, 18 May 2023

तेरे आने का धोका सा रहा है

तेरे आने का धोका सा रहा है
दिया सा रात भर जलता रहा है

अजब है रात से आँखों का आलम
ये दरिया रात भर चढ़ता रहा है

सुना है रात भर बरसा है बादल
मगर वो शहर जो प्यासा रहा है

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है

किसे ढूँढ़ोगे इन गलियों में 'नासिर'
चलो अब घर चलें दिन जा रहा है 

चलो मान लिया

तेरी मेरी नहीं पहचान चलो मान लिया ।
हम दोनों ही हैं अनजान चलो मान लिया।।

तूमने ठानी है न छोड़ोगे कहीं का मुझको।
खुद ही बन बैठे हो भगवान चलो मान लिया।।

तोड़ कर वादे, वफ़ा, कसमें चली जाती हो।
तुमने मुझपे किया एहसान चलो मान लिया।।

है यकीं तुमको किसी और की हो जाओगी।
पूरे कर लोगी तुम अरमान चलो मान लिया।।

मैने गिरने से बचाया है कई बार तुम्हें।
अब संभालोगी तुम तूफ़ान चलो मान लिया।।

इश्क़ बनकर कभी दिल में रहा करते थे।
चंद लम्हों के थे मेहमान चलो मान लिया।।

मुझे पहचानने की भूल कभी न करना ।
तुमने जारी किया फ़रमान चलो मान लिया।।

हजारों आरज़ू का तूने कत्ल कर डाला।
तुझसे बेहतर नहीं इंसान चलो मान लिया

बस फक्त जिस्म से ये जान निकल जाएगी।
मैं न होऊंगा परेशान चलो मान लिया।।

यूं तो बरसों ही संभाला है मुझे तुमने मगर।
तुम नहीं मेरे निगेहबान चलो मान लिया।।

यूं तो हर रोज़ सिखाए तुझे दुनिया के हुनर ।
हम हमेशा से हैं नादान चलो मान लिया।।

खुद से मेंहदी ने बसाया है गजलों का शहर।
मेरे बस का नहीं उनवान चलो मान लिया।।

क्यों ऐसे हालात नहीं

क्यों तू मेरे साथ नहीं
क्यों ऐसे हालात नहीं

मैं भी मैं हूंँ, तू भी तू है, क्या ऐसा था जो बदल गया
कश्ती तो काबू में थी, क्यों हाथ से साहिल फिसल गया
जब रातें छोटी पड़ जाती थी, वह सपनों की बारात नहीं
क्यों ऐसे हालात नहीं
क्यों तू मेरे साथ नहीं

तू मुझ में है ,मैं तुझ में हूंँ, एक दूजे में रहते हम
तू मेरा गम ,मैं तेरा गम ,एक दूजे का सहते गम
यहां भी रिमझिम वहां भी रिमझिम, बेशक अब बरसात नहीं
क्यों ऐसे हालात नहीं
क्यों तू मेरे साथ नहीं

ख्वाबों में ही मिलते हैं, रूबरू, जमाना बीत गया
तू भी हारा, मैं भी हारी, कोई और ही जीत गया
जिनमें हम डूबे रहते थे, क्यों अब वो जज्बात नहीं
क्यों ऐसे हालात नहीं
क्यों तू मेरे साथ नहीं

ना तू भूला,ना मैं भूली, उन पनघट वाली बातों को
तुझे मैं ढूंढूं मुझे तू ढूंढे, हम ढूंढ रहे जज्बातों को
जब चांद भी शरमा जाता था, वह पूनम वाली रात नहीं

क्यों ऐसे हालात नहीं
क्यों तू मेरे साथ नहीं
क्यों ऐसे हालात नहीं

-देवेन्द्र

समझाना क्या था

जब इकतरफा फैसला था तो
समझना समझाना क्या था
उसको जाना था वो चला गया
तो रोना रुलाना क्या था

जिनके हिस्से में होते हैं सितारे
उनकी किस्मत में रात भी होती है
जब दोनों हैं नसीब में तो
खोना और पाना क्या था।

ये जीवन है खेल बस
मरने और जीने का
जब मालूम ही था कि जाना ही है
फिर मातम मनाना क्या था।

तेरे इश्क को कुछ इस तरह ठुकरा दिया 
न तुझे याद किया न तुझे भुला पाया 
काश कभी तेरी तरफ तवज्जो न दिया होता 
खुद के गलती से दूर आज खुद को जी रहा होता 

Wednesday, 17 May 2023

हँसी आती है तेरी जुस्तजू देख कर 
Farhad कभी तेरे मुरीदों में हम भी शामिल थे 


Friday, 12 May 2023

ऐ वक्त्त तू यही ठहर जा

ऐ ख़ुशनुमा सुबह, तेरा क्या ही कहना 
ठंडी ठंडी हवाएं, और उसकी ये धीमी रफ्तार 
चिडियों का यों चहचहाना 
ऐ waqt तू ठहर जा 

Fazr के azan की आवाज, 
Wo namaz ka waqt,
Ae khuda क्या वाकई तूने 
सारी कायनात हमारे लिए बनाई 
Khuda tera बहुत बहुत शुक्रिया 
Ae waqt तू यही ठहर जा 

सुनहरी किरणें बिखेरता हुआ ये सूरज 
अपने वज़ूद को छुपाता हुआ ये चांद 
चाँद को गुमान था अपने चांदनी पर 
अब सूरज इतरा रहा है अपने मौसीक़ी पर 
ऐ सुबह ये कैसा संगम है 
चाँद तो जा रहा है, ए सूरज तू रूक जा 
ऐ waqt तू यही ठहर जा

न जाने लोग क्यों सोये हुए हैं 
किस ख़्वाब में खोए हुए हैं 
न सूरज ठहरेगा, न चांद रूक रहा है 
फिर ऐ बन्दे तू किस के इन्तेज़ार में रो रहा है 
कल का दिन गया, रात भी बीत गई 
ऐ सुबह तू यही ठहर जा

परिन्दे खाने की तलाश में निकल रही हैं 
दो दानो की भूख उसे उन्हें सता रही है 
सच है रोज़ी देने वाला khuda है 
बगैर कोशिश के फिर क्यों मर रहा है 
मेहनत कर, किस्मत बना, और बोल मेहनत से 
ऐ मेहनत तू यही ठहर जा

दिन का उजाला अब बढ़ने लगा है 
चाँद की चांदनी भी अब जाने लगी है 
दोनों अपने waqt का बादशाह है 
कोई किसी से कम नहीं 
अपने अपने waqt पर दोनों का फलसफा है 
ये चांद अभी तो जा रहा है 
रात में फिर लौटेगा 
तू मेहनत करता रह 
ये waqt है जरूर बदलेगा 
अपने कामयाबी का जश्न कुछ यूं मनाएगा 
फिर तु भी कहेगा 
ऐ waqt तू यही ठहर जा


Mohd Mimshad





Friday, 5 May 2023


डूब गए तो किनारों से कहना अलविदा हमें, 
उभर गए तो यकीन मानो, खुद में समंदर समेट लेंगे 

Wednesday, 3 May 2023


ज़िद पर आ जाऊँ तो पलट कर भी न देखू 
मेरे सब्र से अभी तुम वाकिफ़ ही कहाँ हो 

Tuesday, 2 May 2023

मैंने सीखा नहीं मिन्नतें करना 
जो ख़फ़ा हुआ वो दफा हुआ 


Monday, 1 May 2023

बनती है इक गजल

जब टूटते हैं दिल और निकलती है आह!आह!
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।

जब हिलते नही लब, और दिल मे होती कुछ कसक।
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।

जब नैनों से न हो बात, और मुस्काते जब अधर।
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।

जब करनी हो गुफ़्तगू, और लफ्ज़ों से मिलते न हो हल।
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।

जब विरह मे हो मिलन, और अल्फाज ठहर जायें।
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।

जब भाव हो प्रबल, और कुछ कहने को मचले मन
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।

जब कीर्ति की हो लेखनी, और स्याही बिखर जाये।
तब बनती है इक गजल, और निकलती है शायरी।।

- डॉ.कीर्ति 

क्या है मोहब्बत

कोई मुझसे पूछे क्या है मोहब्बत मैं कहूं बर्बादी है
जिस्मों की है भूख इसे और खून की प्यासी है

सब कुछ लेगी छीन मोहब्बत कुछ ना रहेगा पास तेरे
रह जाए बस मृत शरीर यह रूह भी साथ ले जाती है

तेरे हाल पर हंसेगी दुनिया और पत्थर तुझको मारेगी
नोच खाती है यह मोहब्बत और गम देने की आदी है

गली-गली तू फिरे भटकता बने ना कोई रफीक तेरा
घर-बार से करती दूर मोहब्बत बड़ा यार तड़पाती है

है शक तुझे मेरी बातों पर मुझे देख मेरे हाल को देख
मैं करता था जिसे मोहब्बत उसकी अगले बरस शादी है

कभी हम भी होते थे आशिक अब तो यार शराबी है
कोई हमसे पूछे क्या है मोहब्बत मैं कहूं बर्बादी है
ऐसे ही गुज़ार ली जिंदगी हमने,..
कभी उसकी "रजा" समझकर,..
तो कभी अपने गुनाहों की "सजा" समझकर...
भरोसे पर ही टिकी है..
"जिंदगी"....
वरना कौन कहता है..
"फिर मिलेंगे"..

नाउम्मीद

मैंने एक कहानी उस दिन लिखा था  जब शायद मैंने उनके आंसुओ के दरिया में अपना चेहरा देखा था उनकी आंसु एक अलग कहानी बता रही थी  शायद कहीं वो मुझे...