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Monday, 24 April 2023

बस चला जा रहा हूं

ये सुहानी शाम, ठंडी हवाओं की लहर 
ये धलता हुआ सूरज, उसकी नशीली किरण 
ये बहता हुआ पानी, गोते लगाता हुआ सुकूं 
दुनिया की सब परेशानियों दुर, तन्हा जिंदगी के बहुत पास 
खुद के मुश्किलों से बेख़बर, बस चला जा रहा हूँ 

दोस्तों की ये बेतुकी बाते, रख दे मिजाज़ बदल कर 
दोस्तो में क़ायनात है, ऐ इंसान तू दोस्ती कर 
हाय ! ये दोस्ती और कुदरत का संगम 
ऐ इंसान तू खुदा का शुक्र कर 
खुदा का शुक्र करते हुए, खुद के मुसीबतों से गाफिल 
दोस्तो का सहारा लेकर, बस चला जा रहा हूँ 

सूरज की किरणे अब गुजरने लगे हैं 
अब चाँद भी अपनी चाँदनी बिखरने लगे हैं 
कहते हैं, दाग है चाँद पर 
फिर भी दुनिया चमकाने में लगे हैं 
ऐ जहां, ये कैसा दस्तूर है तेरा 
हम किसी को रोशनी दे कर भी शियाह बनने लगे हैं 
इस चाँद की चाँदनी में, इन हवाओं का बोसा लेकर
खुद शियाह की सकल में, बस चला जा रहा हूं 

ये सुनसान रात, ये हाथों से फिसलते हुए रेत
इन जुगनुओं की शरारत, इन पक्षियों की शराफत 
हवाओं के मदमस्त झोंके, दरिया की गरगराहट 
क्या नजारा है, बस सुकूं का खज़ाना है 
खुद के बहुत पास, हसद से बहुत दूर हूं 
इस लम्हे को जीकर, बस चला जा रहा हूं

               Mohd Mimshad



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