सफर पर निकला हूँ
न जाने koun सी मंजिल रास
आएगी मुझे
बस एक सुकून की तलाश में निकला हूँ
जब मैंने देखा उसे
जिंदगी कुछ थम सी गई
मैं सालों पीछे रह गया
हमसफर बहुत दूर निकल गए
थामा था हाथ उसका
हर कदम साथ होगी
राहों में कांटे आने लगे
अब सब को गौर से समझने लगे
मैं हूँ एक मुसाफ़िर
मंज़िल का ठिकाना नहीं
अब rabta करना है
मुझे भी हमसफर से
गुजरा हुआ waqt ठीक करना है
खुद पर भरोसा कर के
दूसरों पर भरोसा करना
मेरे सफर की तौहीन होगी
मंजिले खास की जगह
कुछ आम सी जिंदगी होगी
अब हर kadam फूंक फूंक कर रखना है
दूसरों के भरोसे से अब मुझे बचना है
दिखाना है उसे भी
जिसने मुझे तन्हा यू छोड़ा है
बगैर किसी सहारे के
अकेले मैं चला हूँ
मैं हूँ एक मुसाफ़िर
सफर पर निकला हूँ
Mohd Mimshad
No comments:
Post a Comment