कौन हूँ मैं खुद से ही पूछता रहता हूँ
आजमाइश हैं जिंदगी की
Labo pe मुस्कान है
आंसुओ का समंदर है
कांटों का गुलदान है
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह महकता रहता हूँ
मैं हूँ एक बुजदिल, कांटों से भागता रहता हूँ
सोचता हूँ लिखू पत्थरों पर aashiqui का पैग़ाम
डरता हूँ इस ठहरे हुए पानी से
समा लेती है खुद में आशिकी का नाम
पैग़ामे mohabbat, मैं क्या du ज़माने को
करना सीखा saku mohabbat,खुद से ही पहले खुद को
आँखों में पट्टी, दिलों में कई राज़ dafan है
ज़हरों सा पनपता हुआ ये इश्क
तैयार है खुद के हवश बुझाने को
मैं भी हूँ एक तिनका उसी सामाज का
जहां khudgarzi को mohabbat का नाम दिया जाता है
मैं भी khudgarzo की तरह
Mohabbat को ढूंढता रहता हूँ
कहता हूँ मुझे इश्क है उससे
फिर भी aashiqui से डरता रहता हूँ
खुद को खुद मे ढूंढता रहता हूँ
कौन हूँ मैं खुद से ही पूछता रहता हूँ
Mohd Mimshad
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