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Thursday, 27 April 2023

क्या लिखू मैं तेरे तारीफ़ के दायरे में 
तेरे दोस्ती के दायरे की कोई हद नहीं 

रहता था अपने गुमान में, 
खुद को हमसाया समझता था 
मेरे बदसलूकी ने 
आज मुझे गुनाहगार बना दिया 

यक़ीन न था कभी उनसे बाते भी होंगी 
खुद के बेइज्जती को नजरअंदाज कर 
तुमने मुझे कर्जदार बना दिया 

मेरा ग़ुरूर इस कदर हावी था मुझ पर 
गर सारी खुदाई भी मिल जाती 
तो सलाम तक ना करता तुझे 

लेकिन हाय ! तेरा ये सादापन ...
खुद के सादगी में समेटकर 
तुने मुझे रंगदार बना दिया 

दुआ है खुदा से हमारी दोस्ती सलामत रहे 
हाथ बढ़ा कर दोस्ती का 
ऐ दोस्त ! तुमने मुझे मालदार कर दिया 

        Mohd Mimshad
जब वक्त्त करवट लेता है ना तो सल्तनत से शहज़ादे भी उठा लिए जाते हैं 

Wednesday, 26 April 2023

दाग़ देहलवी की ग़ज़ल 'बात मेरी कभी सुनी ही नहीं, जानते वो बुरी भली ही नहीं'

बात मेरी कभी सुनी ही नहीं
जानते वो बुरी भली ही नहीं

दिल-लगी उन की दिल-लगी ही नहीं
रंज भी है फ़क़त हँसी ही नहीं

लुत्फ़-ए-मय तुझ से क्या कहूँ ज़ाहिद
हाए कम-बख़्त तू ने पी ही नहीं

उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं

जान क्या दूँ कि जानता हूँ मैं
तुम ने ये चीज़ ले के दी ही नहीं

हम तो दुश्मन को दोस्त कर लेते
पर करें क्या तिरी ख़ुशी ही नहीं

हम तिरी आरज़ू पे जीते हैं
ये नहीं है तो ज़िंदगी ही नहीं

दिल-लगी दिल-लगी नहीं नासेह
तेरे दिल को अभी लगी ही नहीं

'दाग़' क्यूँ तुम को बेवफ़ा कहता
वो शिकायत का आदमी ही नहीं

दाग़ देहलवी

Monday, 24 April 2023

बस चला जा रहा हूं

ये सुहानी शाम, ठंडी हवाओं की लहर 
ये धलता हुआ सूरज, उसकी नशीली किरण 
ये बहता हुआ पानी, गोते लगाता हुआ सुकूं 
दुनिया की सब परेशानियों दुर, तन्हा जिंदगी के बहुत पास 
खुद के मुश्किलों से बेख़बर, बस चला जा रहा हूँ 

दोस्तों की ये बेतुकी बाते, रख दे मिजाज़ बदल कर 
दोस्तो में क़ायनात है, ऐ इंसान तू दोस्ती कर 
हाय ! ये दोस्ती और कुदरत का संगम 
ऐ इंसान तू खुदा का शुक्र कर 
खुदा का शुक्र करते हुए, खुद के मुसीबतों से गाफिल 
दोस्तो का सहारा लेकर, बस चला जा रहा हूँ 

सूरज की किरणे अब गुजरने लगे हैं 
अब चाँद भी अपनी चाँदनी बिखरने लगे हैं 
कहते हैं, दाग है चाँद पर 
फिर भी दुनिया चमकाने में लगे हैं 
ऐ जहां, ये कैसा दस्तूर है तेरा 
हम किसी को रोशनी दे कर भी शियाह बनने लगे हैं 
इस चाँद की चाँदनी में, इन हवाओं का बोसा लेकर
खुद शियाह की सकल में, बस चला जा रहा हूं 

ये सुनसान रात, ये हाथों से फिसलते हुए रेत
इन जुगनुओं की शरारत, इन पक्षियों की शराफत 
हवाओं के मदमस्त झोंके, दरिया की गरगराहट 
क्या नजारा है, बस सुकूं का खज़ाना है 
खुद के बहुत पास, हसद से बहुत दूर हूं 
इस लम्हे को जीकर, बस चला जा रहा हूं

               Mohd Mimshad



Saturday, 22 April 2023

मैं तुम्हारे खुशियो का muntazir nahi
mujh me tabir nahi tere muhabbat ki
सकल, रंग, रूप मुझे किसी का ख्याल नहीं 
मैं मुश्ताक tha तेरे aamad की 
तूने सच्चाई बताई इस kadar मुझको 
मेरे हसद ने ही जान ले ली मुझ गरीब की 


माना कि मैं ज़हर का प्याला हूँ, और तू शहद की मिठास है 
गर्द व ग़ुबार है तुम्हारे चारों सू, मैं कांटों सा tanha हूँ 
बेवफ़ाई का सलीक़ा nahi आता मुझे 
मैं लोगों की सलामती की दुआ karta हूँ 


तुझ को मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी
ईद अब के भी दबे पाँव गुज़र जाएगी
– ज़फ़र इक़बाल

महक उठी है फ़ज़ा पैरहन की ख़ुशबू से
चमन दिलों का खिलाने को ईद आई है
– मोहम्मद असदुल्लाह

है ईद मय-कदे को चलो देखता है कौन
शहद ओ शकर पे टूट पड़े रोज़ा-दार आज
– सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

बादबाँ नाज़ से लहरा के चली बाद-ए-मुराद
कारवाँ ईद मना क़ाफ़िला-सालार आया
– जोश मलीहाबादी


Wednesday, 19 April 2023

बहस मत करो हार जाओगी 
तुम्हारा हुस्न इतनी बड़ी दलील नहीं 




मैं हूँ एक मुसाफ़िर

मैं हूँ एक मुसाफ़िर 
सफर पर निकला हूँ 
न जाने koun सी मंजिल रास 
आएगी मुझे 
बस एक सुकून की तलाश में निकला हूँ 

जब मैंने देखा उसे 
जिंदगी कुछ थम सी गई 
मैं सालों पीछे रह गया 
हमसफर बहुत दूर निकल गए 

थामा था हाथ उसका 
हर कदम साथ होगी 
राहों में कांटे आने लगे 
अब सब को गौर से समझने लगे 

मैं हूँ एक मुसाफ़िर 
मंज़िल का ठिकाना नहीं 
अब rabta करना है
मुझे भी हमसफर से 
गुजरा हुआ waqt ठीक करना है 
खुद पर भरोसा कर के 

दूसरों पर भरोसा करना 
मेरे सफर की तौहीन होगी 
मंजिले खास की जगह 
कुछ आम सी जिंदगी होगी 

अब हर kadam फूंक फूंक कर रखना है 
दूसरों के भरोसे से अब मुझे बचना है 

दिखाना है उसे भी 
जिसने मुझे तन्हा यू छोड़ा है 
बगैर किसी सहारे के 
अकेले मैं चला हूँ 

मैं हूँ एक मुसाफ़िर 
सफर पर निकला हूँ


               Mohd Mimshad


Sunday, 16 April 2023

नफरत नही है 
मुझे तुमसे उतनी 
बस तेरी बदसलूकी का हिसाब 
कुछ अलग तरह से करना है 

Friday, 14 April 2023

मेरा हाल तुम पूछते हो.....
अफ़सोस है, 
जिसका karam है 
उसे ही पता नहीं 
खैर, तुमने हाल तो पूछा 
Warna तुम्हें तो सिर्फ़ कहर dhane का हुनर आता है 

Tuesday, 11 April 2023

सब्र देखना है तो मुसलमान का रोज़ा देखो 
हाथों में वज़ू का पानी है 
और लबो में शिद्दत की प्यास है 
सामने खाने का इन्तेजाम है 
लेकिन व्यक्त पूरा होने का फिर भी इन्तेज़ार है 

                       

Monday, 10 April 2023

इतना आसान नहीं होता 
ज़माने से सौदेबाज़ी करना 
यहां लोग अक्सर 
काक (एक बेह्तरीन किस्म की रोटी) दिखाकर खाक दे जाते हैं 

Friday, 7 April 2023

Haal e Dil

दर्द अब छुपता नहीं छुपाने से 
क्या वजह बताये हम tanha रहने की ज़माने से 

बड़ा समझाया dil को भूल जा उसे 
जो छोड kar chala गया 
मगर ziddi है ये दिल 
Samajta ही नहीं समझाने से 

आज कैसे उसे बेवफा का नाम हम देदे 
खुद ही बगावत कर के पाया था जिसे ज़माने से 

तुझे क्या गम है कि शराब में डूबा हुआ है तू 
इस तरह हजारो सवाल उठते हैं 
शाम को मैखाने में 

Dost पूछते हैं कौन है वो 
जिसने तुझे इस तरह बर्बाद कर दिया 
कैसे उनका नाम लेकर 
उनको बदनाम करे हम 

जिसे इतनी इज्जत से बसाया था 
दिल के घराने में 
आज महफ़िल में भी tanhai जिनका साथ नहीं chodti
एक waqt tha जब मेरा भी कोई ज़वाब nahi tha 
हंसने में हसाने  में 

तुझे तो कभी कसूरवार समजा hi nahi Maine
गुनाह मेरा ही था जो farq na kar पाया 
अपनों में और begano में 

और जब wafa की है मैंने 
उसका एहसास भी उन्हें जरूर होगा 
तब tadpenge हमें पाने के लिए फिर से 
मगर हमारा ठिकाना उनसे बहुत दूर होगा 

बाते करेंगी हमारी तस्वीर से, कि तुम कहां चले गए 
हम khuda k पास चले जाएंगे 
तब लाख उसके रोने पर भी 
लौट के na आयेंगे 

तब उन्हें हमारी आंसुओ की कीमत का अंदाजा होगा 
वो ro रही होंगी 
जब उसकी गली से गुज़र रहा हमारा janaza होगा 

रातों जाग कर हम उसे कैसे पाने की दुआए करते थे 
हमारे जाने के बाद उसे मालूम होगा कि हम उन pe कितना मरते थे 

Khuda k दर पर वो हमारी तरह फ़रियाद करेगी 
आज nahi तो कल मुझ गरीब को ज़रूर याद करेगी 


     Feroz Shaikh
इश्क तो वो था जनाब .....
के आशिक ने  aazaan na दी 
तो खालिक ने सुबह न की 
इबादत करते है, दूसरों को तकलीफ़ देते है
Sadqaa करते है,  मगर एहसान जताते है
अपनी नेकिया कुछ यूं जमा करते है
अपने थैली में खुद ही सुराख़ करते है

Wednesday, 5 April 2023

बला से Zakhm e dil hue नासूर बन जाए 
मगर kamzarf k हाथों से हम marham nahi लेंगे 
जिन्हें tu dost कहता है उन्हीं से तुझको बचना है 
ये बदलेंगे तो badla दुश्मनों से कम नहीं लेंगे 

शीशा टूटे गुल मच जाए 
दिल टूटे आवाज na आए 
Sanp dase तो dost बचाए 
Dost dase तो koun बचाए 

  Anish Sabri

खुदा तेरा शुक्र है।

सोचता था कि गलती की थी मैंने 
उनका aihtram karna, 
गुनाहगार बना दिया मुझको 

उस गुनाह की सज़ा भी क्या खूब मिली मुझको 
ब़ाग को बागबां मिल गया 
भौरा yu tanha rah गया 

Aukat क्या थी मेरी, मुझको पता चल गया 
ठुकराया मैंने भी बहुतों को tha
शायद उनका बद्दुआ असर कर गया 

Zalim tha इश्क mera 
मुझको रुस्वा कर गया 
थामा tha हाथ जिसका 
वो मुझको अकेला कर गया 

Tajurba e आशिकी का क्या खूब मिला 
Farhad को sheeri na मजनू को लैला मिला 

वो गुनाह e azeem हो गया मुझसे 
जो दुआओं में तुझको मांग लिया khuda से 
क्या खतरनाक सज़ा होती meri
जो qubul दुआए होती meri

Khuda tera शुक्र है, dua na qubul की tune meri
तुझसे बेहतर koun जनता है क्या haq me hai मेरी 

तूने सज़ा भी क्या खूब दिया 
Gujasta ko गुनाह बता कर 
आइंदा e Farhad ko बेहतर बना दिया 

    Mohd Mimshad


Monday, 3 April 2023

खुद को ढूंढता रहता हूँ । ।

खुद को खुद मे ढूंढता रहता हूँ 
कौन हूँ मैं खुद से ही पूछता रहता हूँ

आजमाइश हैं जिंदगी की 
Labo pe मुस्कान है 
आंसुओ का समंदर है 
कांटों का गुलदान है 

गुलाब की पंखुड़ियों की तरह महकता रहता हूँ 
मैं हूँ एक बुजदिल, कांटों से भागता रहता हूँ 

सोचता हूँ लिखू पत्थरों पर aashiqui का पैग़ाम 
डरता हूँ इस ठहरे हुए पानी से 
समा लेती है खुद में आशिकी का नाम 

पैग़ामे mohabbat, मैं क्या du ज़माने को 
करना सीखा saku mohabbat,खुद से ही पहले खुद को 
आँखों में पट्टी, दिलों में कई राज़ dafan है 
ज़हरों सा पनपता हुआ ये इश्क 
तैयार है खुद के हवश बुझाने को 

मैं भी हूँ एक तिनका उसी सामाज का 
जहां khudgarzi को mohabbat का नाम दिया जाता है 
मैं भी khudgarzo की तरह 
Mohabbat को ढूंढता रहता हूँ 
कहता हूँ मुझे इश्क है उससे 
फिर भी aashiqui से डरता रहता हूँ 

खुद को खुद मे ढूंढता रहता हूँ 
कौन हूँ मैं खुद से ही पूछता रहता हूँ 

               Mohd Mimshad




नाउम्मीद

मैंने एक कहानी उस दिन लिखा था  जब शायद मैंने उनके आंसुओ के दरिया में अपना चेहरा देखा था उनकी आंसु एक अलग कहानी बता रही थी  शायद कहीं वो मुझे...