Followers

Wednesday, 4 October 2023

याद आए वही पुराने दिन

कल जब मैं घर को लौट रहा था 
तुम फिर एक बार दिखी थी 
काफी खुश लग रही थी 
बस झूम कर मुस्कुरा रही थी 

मुझे फिर याद आए वही पुराने दिन 
वही तेरी बालों की हरारत 
तेरी नादानीया, तेरी बेबाकीया 
तेरे कई सवाल, मेरे हर जवाब 

याद मुझे आज भी सबकुछ है
शायद अब तुझे मैं याद नहीं 
मुझे भूलना मत 
आखिरी दिन ये कौल तुम्हारा था 
मुझे यू अकेला छोड़ना 
ये हसीं फैसला भी तेरा था 

नफरत नहीं है मुझे तुमसे 
बस मैं गुस्सा हूँ खुदसे
एक बेईमान को 
हमदर्द समज लिया मैंने

जिसे कोई मतलब ही न था 
उसे मैंने बिना मतलब ही अहम मुकाम दे दिया 
सकल अच्छाई का दिखाकर 
तू तो बाहिजाब निकला 

अब नहीं करता तुझे मैं याद 
अपनी तल्ख़ जुबां पर अब गुमान है मुझे 
अपनी नर्मी का अब पछतावा है मुझे 

सीख रहा हूं मैं भी अब 
दुनिया को पढ़ने का हुनर 
यहां तेरी तरह 
सब बाहिजाब है 

शिकायत तुझसे नहीं है 
खुदा का शुक्र है 
उसने मिलाया मुझे तुझसे 
आज दुनिया मे चलने के लिए 
आगाह किया उसने 

नफरतो की आग सीने में भड़क रही है 
कांटों से एक नया समंदर भर रहा है 
दिल भी पत्थर बन रहा है 
दया के आंसू भी अब सुख रहे हैं 

अपनी नादानी में मैंने गलती की 
दूसरों पर भरोसा किया 
इंसानियत की कीमत कुछ भी नहीं 
अपनों ने ही मुझे बेसहारा किया

Mohd Mimshad

No comments:

Post a Comment

नाउम्मीद

मैंने एक कहानी उस दिन लिखा था  जब शायद मैंने उनके आंसुओ के दरिया में अपना चेहरा देखा था उनकी आंसु एक अलग कहानी बता रही थी  शायद कहीं वो मुझे...