तुम फिर एक बार दिखी थी
काफी खुश लग रही थी
बस झूम कर मुस्कुरा रही थी
मुझे फिर याद आए वही पुराने दिन
वही तेरी बालों की हरारत
तेरी नादानीया, तेरी बेबाकीया
तेरे कई सवाल, मेरे हर जवाब
याद मुझे आज भी सबकुछ है
शायद अब तुझे मैं याद नहीं
मुझे भूलना मत
आखिरी दिन ये कौल तुम्हारा था
मुझे यू अकेला छोड़ना
ये हसीं फैसला भी तेरा था
नफरत नहीं है मुझे तुमसे
बस मैं गुस्सा हूँ खुदसे
एक बेईमान को
हमदर्द समज लिया मैंने
जिसे कोई मतलब ही न था
उसे मैंने बिना मतलब ही अहम मुकाम दे दिया
सकल अच्छाई का दिखाकर
तू तो बाहिजाब निकला
अब नहीं करता तुझे मैं याद
अपनी तल्ख़ जुबां पर अब गुमान है मुझे
अपनी नर्मी का अब पछतावा है मुझे
सीख रहा हूं मैं भी अब
दुनिया को पढ़ने का हुनर
यहां तेरी तरह
सब बाहिजाब है
शिकायत तुझसे नहीं है
खुदा का शुक्र है
उसने मिलाया मुझे तुझसे
आज दुनिया मे चलने के लिए
आगाह किया उसने
नफरतो की आग सीने में भड़क रही है
कांटों से एक नया समंदर भर रहा है
दिल भी पत्थर बन रहा है
दया के आंसू भी अब सुख रहे हैं
अपनी नादानी में मैंने गलती की
दूसरों पर भरोसा किया
इंसानियत की कीमत कुछ भी नहीं
अपनों ने ही मुझे बेसहारा किया
Mohd Mimshad
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