मेरी गलत सोच पर
दुनिया के इन कारनामों पर
मेरे मालिक मुझे माफ कर
हँसी आती है मालिक
तेरे बंदों पर, खुद पर
लगा कर आग खुद दुनिया मे
कहते हैं कि हम पानी डालने वालों से है
सिर पर टोपी, दाढ़ी भी बड़ी घनी
जुबां पर गालियों के फूल
इंसानियत पर भी कांटे चुभे हुए
I support फिलिस्तीन
Social media पर एक अलग मुजाहेरा करते हैं
शायद हमे उमर की खिलाफ़त याद नहीं
हम भूल चुके हैं इस्लामी हुकुमत को
जिस नाच गाने की इस्लाम में कोई जगह नहीं
उसी के बिना हमारा दिन गुज़रता नहीं
ये सारी गलतियां हम कर रहे हैं मालिक
लेकिन तेरे बन्दे हैं, हमे माफ़ कर
क्या वाकई ये जंग है
या हमारे गुनाहों का नया अज़ाब है
जब हम नेक राह पर थे
पूरी दुनिया मे हम ही शहंशाह थे
हमारे गुनाहों की सज़ा उन बेगुनाहों न दे
रहम कर मालिक, हमे माफ़ी दे
हम जानते हैं मालिक
जिस गलती को देख उमर ने
अपने बेटे को माफ़ तक न किया
आज हम खुले आम
छेड़ते हैं गैर मेहराम
लेकिन तूने इब्न ए उमर को माफ़ किया
हमारी भी दरख्वास्त है मालिक,
फिलिस्तीनीयो को भी बचा
औरतों को पर्दे का हुक्म है
मर्दों का भी नजरो को झुकाना
सुन्नत ए नबी है
हर एक सुन्नत का जनाज़ा हम रोज़ निकालते हैं
मेरे खुदा वो ज़ालिम सब को बेपर्दा कर रहे हैं
हम बस यही दुआ कर रहे हैं
जो बिलावजह जुल्म कर रहे हैं
मेरी दुआओं को कुबूल कर
उन ज़ालिमो से मासूमों को बचा
हुक्मरानों ने जब ख्वाजा को पानी नहीं दिया
तूने पानी को ख्वाजा के पास भेज दिया
हमारी ज़ाहिलीयत भी कम नहीं
प्यासों को पूछना भी अब हमें ग्वारा नहीं
मालिक उन प्यारे बच्चों को भी
गैब से रोजी अता कर
हमारे गुनाहों की सज़ा उन्हें न दे
हम तेरे बन्दे हैं मालिक, हमें माफ कर
तू तो हर दिन हमें आवाज देता है
हम बेहयाइयो में सारा वक्त गुज़ार देते हैं
मस्जिदें खाली छोर,
सिनेमा घरों की शान बढ़ाते हैं
तेरा करम है,
मस्जिद ए अक्सा की शान बरकरार है
मालिक मस्जिद ए अक्सा की हिफाजत कर
हमारी गलतियों के लिए हमें माफ़ कर
मोदी मुस्लिमो पर ज़ुल्म करता है
सभी के जुबां पर यही कौल रहता है
चौबीस घंटे में
चौबीस हजार सुन्नतौ का जनाज़ा निकालते हैं
खुद को मुसलामान कहते हैं
हमें राहे मुश्तकीम पर चलने की तौफिक अता कर
मालिक फिलिस्तीनी की हिफाजत कर
किसकी अच्छाई बयां करूं
आँखों की या
हमेशा गानों की तरानो से भरे कानो की
गंदी फ़िल्मो की दीदार करते ये आंख
जुबां भी खुले तो गालियों के फूल बरसे
खुद को मुसलामान कहते हैं
अपनों का गला भी बड़े शौक से काटते हैं
इन सब की सज़ा से उन मजलूमो को बचा
हमें सही राह पर चला
इंसानियत के कौम को बचा
हमें माफ कर मालिक
सब पर रहम कर
फिलिस्तीनी को बचा
ऐसा कुछ फिर एक बार करिश्मा कर
Mohd Mimshad
No comments:
Post a Comment