कड़क कांटों सा जिसका मिजाज़ है
कभी कली की देखभाल करता है
कभी मिट्टी के बर्तनों को तरासता है
वही है जो नई दुनिया के दर्शन कराता है
कोई और नहीं ये मुक़ाम पिता के हिस्से आता है
खुद को धूप में जला कर
दो वक्त की रोटी सेकता है
खुद फूलों की तरह बिखर कर
दूसरों तक महक फैलाता है
ये हुनर सिर्फ़ एक पिता को आता है
ये मुक़ाम सिर्फ़ पिता के हिस्से आता है
सड़कों की बात करूं मैं
या फिर कहानी सुनाऊँ एक खेव्वैये की
मंज़िल तक राहगीर को पहुंचाकर
अपने जगह वापस आ जाता है
ये किस्सा एक पिता की याद दिलाता है
ये मुक़ाम एक पिता के हिस्से आता है
खाई हो या दरिया में तन्हाई हो
सब से लड़ना आता है जिसे
परेशानियों को परेशान कर
हर मुश्किलों से लड़ना आता है जिसे
शोलों से भी ज्यादा चिंगारी सीने में भर कर
परिवार के लिए एक अलग अवतार लेता है
ये मुकाम एक पिता के हिस्से आता है
अपने सच्चे ख्वाब का गला घोट कर
अपने बच्चों में एक नए सपने के जाल को बुनता है
बस्ते को खरीद कर बड़े प्यार से मुस्कराता है
एक उम्मीद की नई किरण के साथ
बच्चे को स्कूल तक छोर कर आता है
बाबा ने मेरे लिए क्या किया
बच्चे उनके मुह पर कह कर जाता है
ये सब कुछ एक पिता सहता है
ये मुकाम एक पिता के ही हिस्से आता है
ऐ आज के ज़माने के लड़के
जगह को देख तू एक दिन अपने पिता के
वो रोज कितने ठोकरों का सामना करता है
जिस पैसे से तू ऐयाशी करता है
उसे जमा करने के लिए एक पिता
रोज पुलसेरात से गुज़रता है
ये मुकाम सिर्फ़ एक पिता के हिस्से ही आता है
खुद गुलाम की तरह जिंदगी गुज़रता है
अपने लाडलों को शहंशाह बनाता है
ईद हो या हो दिवाली
फटे कपड़ों में ही उसकी शान बनी रहती है
त्योहारों पर नए कपड़े होने ही चाहिए
हमेशा उनके जुबां पर ये बात रहती है
पापा की परी लोग कहते है जिसे
एक पिता को वो जान से भी प्यारा होता है
ये मुकाम भी एक पिता के हिस्से आता है
तारीफ़ करू या बाबा की दर्द बयां करू मैं
मेरे कलम में वो ताकत नहीं
पिता के शख्सियत को कागज पर उतारू मैं
शायद यही कारण है
शायर के कलम कांपते होंगे
बाबा का नाम सुन कर शायर भी डर जाते होंगे
माँ के बारे सभी लिखते हैं
लेकिन पिता से तुम्हारे सारे गुण दिखते हैं
बाबा आज मैं अकेला हू
कौन सहारा देगा
तुम थे तो हिम्मत थी मुझमें
हर सवाल का ज़वाब तुझसे मिलता था
बेशक यह मुकाम भी तेरे ही हिस्से आता था
Mohd Mimshad
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