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Thursday, 5 October 2023

बाबा का मुकाम

पत्थर जैसा जो बेहिसाब सख्त है 
कड़क कांटों सा जिसका मिजाज़ है 
कभी कली की देखभाल करता है 
कभी मिट्टी के बर्तनों को तरासता है 
वही है जो नई दुनिया के दर्शन कराता है 
कोई और नहीं ये मुक़ाम पिता के हिस्से आता है 

खुद को धूप में जला कर 
दो वक्त की रोटी सेकता है 
खुद फूलों की तरह बिखर कर 
दूसरों तक महक फैलाता है
ये हुनर सिर्फ़ एक पिता को आता है 
ये मुक़ाम सिर्फ़ पिता के हिस्से आता है

सड़कों की बात करूं मैं 
या फिर कहानी सुनाऊँ एक खेव्वैये की
मंज़िल तक राहगीर को पहुंचाकर 
अपने जगह वापस आ जाता है
ये किस्सा एक पिता की याद दिलाता है 
ये मुक़ाम एक पिता के हिस्से आता है

खाई हो या दरिया में तन्हाई हो 
सब से लड़ना आता है जिसे
परेशानियों को परेशान कर 
हर मुश्किलों से लड़ना आता है जिसे 
शोलों से भी ज्यादा चिंगारी सीने में भर कर 
परिवार के लिए एक अलग अवतार लेता है 
ये मुकाम एक पिता के हिस्से आता है 

अपने सच्चे ख्वाब का गला घोट कर 
अपने बच्चों में एक नए सपने के जाल को बुनता है
बस्ते को खरीद कर बड़े प्यार से मुस्कराता है 
एक उम्मीद की नई किरण के साथ 
बच्चे को स्कूल तक छोर कर आता है 
बाबा ने मेरे लिए क्या किया 
बच्चे उनके मुह पर कह कर जाता है 
ये सब कुछ एक पिता सहता है 
ये मुकाम एक पिता के ही हिस्से आता है

ऐ आज के ज़माने के लड़के 
जगह को देख तू एक दिन अपने पिता के 
वो रोज कितने ठोकरों का सामना करता है 
जिस पैसे से तू ऐयाशी करता है 
उसे जमा करने के लिए एक पिता 
रोज पुलसेरात से गुज़रता है 
ये मुकाम सिर्फ़ एक पिता के हिस्से ही आता है

खुद गुलाम की तरह जिंदगी गुज़रता है 
अपने लाडलों को शहंशाह बनाता है 
ईद हो या हो दिवाली 
फटे कपड़ों में ही उसकी शान बनी रहती है 
त्योहारों पर नए कपड़े होने ही चाहिए 
हमेशा उनके जुबां पर ये बात रहती है 
पापा की परी लोग कहते है जिसे 
एक पिता को वो जान से भी प्यारा होता है 
ये मुकाम भी एक पिता के हिस्से आता है

तारीफ़ करू या बाबा की दर्द बयां करू मैं 
मेरे कलम में वो ताकत नहीं 
पिता के शख्सियत को कागज पर उतारू मैं 
शायद यही कारण है 
शायर के कलम कांपते होंगे 
बाबा का नाम सुन कर शायर भी डर जाते होंगे 
माँ के बारे सभी लिखते हैं 
लेकिन पिता से तुम्हारे सारे गुण दिखते हैं 

बाबा आज मैं अकेला हू 
कौन सहारा देगा 
तुम थे तो हिम्मत थी मुझमें 
हर सवाल का ज़वाब तुझसे मिलता था 
बेशक यह मुकाम भी तेरे ही हिस्से आता था 


Mohd Mimshad

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