कई दिन कट गए झूठी मुस्कान में
फिर भी एक उम्मीद की किरण थी
एक दिन फिर साथ होंगे
हम घर को फिर लौट आएँगे
चार दीवारों की दुनिया मे
यू सीमट गया था मैं
कुछ करने की चाहत को लेकर
घर से निकल गया था मैं
एक दिन हम भी कुछ कर जाएंगे
हम घर को फिर लौट आएँगे
अकेले तन्हाई के समंदर में
कुछ सपने लिए गोता लगा चुका था मैं
हाय रे ज़िंदगी ! तेरा भी क्या उसूल है
एक गहरे भंवर में फंस गया था मैं
हर भंवर को ज़रूर आएँगे
हम घर को फिर लौट आएँगे
सपनों से ज्यादा तुम याद आते हो
Abba तुम अपना प्यार कभी क्यों नहीं दिखाते हो
Ammi तो खैर है मारती थी,
mohabbat से खाना खिलाती थी
एक दिन सपना तुम्हारा जरूर पूरा करेंगे
हम घर को फिर लौट आएँगे
Mohd Mimshad
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