Followers

Thursday, 6 July 2023

किताबें झाँकती है बंद आलमारी के शीशों से 
बड़ी हसरत से तकती है 
महीनों अब मुलाकातें नहीं होती 
जो शामे उनकी सोहबत पे कटा करती थी 
अब वो अक़्सर 
गुजर जाती है computer की पर्दों पर 

गुलजार 

No comments:

Post a Comment

नाउम्मीद

मैंने एक कहानी उस दिन लिखा था  जब शायद मैंने उनके आंसुओ के दरिया में अपना चेहरा देखा था उनकी आंसु एक अलग कहानी बता रही थी  शायद कहीं वो मुझे...