जाकर पूछ मेरी मां से कितना लाडला था मैं
माँ ने प्यार से गोद में खेलना सिखाया
पापा ने उंगली पकर कर चलना सिखाया
मामा-खाला ने mohabbat से उड़ना सिखाया
नाना-नानी ने इश्क की सीढ़ी बना कर आसमान पर बिठाया
ऐ ज़िंदगी तूने तो रुला कर रख दिया
जाकर पूछ मेरी सब से कितना लाडला था मैं
जब आंखों में आंसू मेरे आते
पूरा घर परेशान हो जाता था
ऐ ज़िंदगी तेरे कदर की क्या तारीफ़ करू
अब तूने मुझे रोने के लायक भी ना रखा
तेरे आशिकी पर कुर्बान जाऊं मैं
तूने मुझे हर मोड़ हर राह पर परेशान किया
कभी सब से जुदा किया
कभी अनजान सी जगह पर अकेला छोड़ दिया
ऐ ज़िंदगी तूने तो रुला कर रख दिया
जाकर पूछ मेरी मां से कितना लाडला था मैं
तोड़ कर तेरी सारी बंदिशें जब मैं वापस आया
तुझे मैं अब क्या कहूं तूने भी खूब प्यार दिया
मुखतशर से वक्त में मेरा कुछ यूं पैग़ाम दिया
आगाज़ हुआ भी न था तूने अंजाम दिया
फिर भी मैं लड़ता रहा सब को तेरे सुपुर्द कर
क्या तूने भी बदला लिया मुझ से सब कुछ छीनकर
तू बता ना मुझे ऐसी क्या खता हो गई
जिसे मैं अपना समझा वो भी छोड़कर चली गई
ऐ ज़िंदगी तूने तो रुला कर रख दिया
जाकर पूछ मेरी मां से कितना लाडला था मैं
तेरी मजाक मुझ से बहुत हुई
लगता है तू मुझे समझा नहीं
मुझे मासूम समझता है
मेरे बदलाव का तुझे अंदाजा नहीं
ऐ ज़िंदगी मेरे व्यक्त बदलने का इन्तेज़ार न कर
तू मुझे खुद दूर कर निश्त-नाबुद कर
गर ठहर गया मैं इस समंदर के तूफ़ान मे
एक ज्वाला का पत्थर बन के उतरूंगा इस जहां में
सब को तुझसे दूर जाने को रोयेंगे
खुदा से मौत की पनाह मांगेंगे
ऐ ज़िंदगी यू ज़ुल्म न कर लोगो पर
हमसाया बन, कदर कर, रहम कर
ऐ ज़िंदगी तूने तो रुला कर रख दिया
जाकर पूछ सब की माँ से कितने लाडले थे सब
Mohd Mimshad