बड़े से दरिया मे
उभरते हुए भंवर में
फसा हुआ
एक छोटा सा कश्ती हूँ
पता नहीं मैं कौन हूँ !!
आगे बढ़ू तो दरिया की लहर है
पीछे चट्टानों से बनी एक बड़ी खाई है
ऐ खुदा अब तुझसे मैं क्या गिला करूं
एक सुनसान किनारे पर अकेला खड़ा हूं
पता नहीं मैं कौन हूँ !!
इस समाज के ताने एक तरफ
कभी खुद के साथ समझौता एक तरफ
न जाने किस सवाल का ज़वाब ढूंढ रहा हूं
एक अनजान सड़क पर निकल पङा हू
खुद के मंजिल को भुला रहा हूं
बस चला जा रहा हूं
पता नहीं मैं कौन हूँ
जीई चाहता है सब छोर कर चला जाऊँ
कुछ ख्वाब है, कुछ जिम्मेदारी है
यही सोच कर चुप हो जाता हू मैं
कभी खुद से बाते करता हू
अकेले में रोता हू, सोचता हूं
पता नहीं मैं कौन हूँ
कोस्ता हूं,
अपने बदकिस्मती पर रोता हू
खुदा से भी यही पूछता हू
पता नहीं मैं कौन हूँ
Mohd Mimshad
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