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Thursday, 23 February 2023

हँसी और आँसू

क्या ये सच है कि तू अकेले में रोता हैं 
फिर ये बता भीड़ में क्यों मुस्कराता हैं 
क्यों खुद को अकेला समझता है तू 
जब खुदा साथ होता है तेरे 
क्या गम है जिसको छिपाता है तू 
बता ए बन्दे, खुदा सब जनता है हाल को तेरे 

क्या खुशी क्या गम 
ये पहलू हैं एक ही सिक्के के 
कभी रो लेता हूँ, कभी मुस्कराता हूँ 
बेशक खुदा जनता है 
सब के हाल को पहचानता है 
जानता हूँ देगा, मुझे भी एक अवसर 
बस यही सोचता हूँ 
ऐ खुदा  तू इतना आजमाता क्यों है 

आज़माना उसकी भी मजबूरी है 
ये तेरे लिए ही है, क्या जरूरी है 
देखना चाहता है तेरे सब्र को 
बेसब्र को क्या ही मिलता है 
यों ही बर्बाद न कर उम्र को ऐ नौजवान 
तू कर्म कर फल की चिंता क्यों करता है 
देगा बेशक वो तुझे भी 
ज़रा इत्मीनान तो रख 
जब बनाया उसने जमीन - आसमाँ सब तेरे लिए 
फिर क्यों मायूस होता है एक छोटे से चीज के लिए 




                                                मोहम्मद मिमशाद 

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