फिर ये बता भीड़ में क्यों मुस्कराता हैं
क्यों खुद को अकेला समझता है तू
जब खुदा साथ होता है तेरे
क्या गम है जिसको छिपाता है तू
बता ए बन्दे, खुदा सब जनता है हाल को तेरे
क्या खुशी क्या गम
ये पहलू हैं एक ही सिक्के के
कभी रो लेता हूँ, कभी मुस्कराता हूँ
बेशक खुदा जनता है
सब के हाल को पहचानता है
जानता हूँ देगा, मुझे भी एक अवसर
बस यही सोचता हूँ
ऐ खुदा तू इतना आजमाता क्यों है
आज़माना उसकी भी मजबूरी है
ये तेरे लिए ही है, क्या जरूरी है
देखना चाहता है तेरे सब्र को
बेसब्र को क्या ही मिलता है
यों ही बर्बाद न कर उम्र को ऐ नौजवान
तू कर्म कर फल की चिंता क्यों करता है
देगा बेशक वो तुझे भी
ज़रा इत्मीनान तो रख
जब बनाया उसने जमीन - आसमाँ सब तेरे लिए
फिर क्यों मायूस होता है एक छोटे से चीज के लिए
मोहम्मद मिमशाद
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