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Saturday, 25 February 2023

तुम्हारा अस्तित्व

कौन हो तुम .....?
जन्म माँ ने दिया 
कंधा गैरों ने  
बुढ़ापे में बच्चों ने सहारा दिया 
चलना सिखाया पिता ने
कौन हो तुम.........?

घमंड है तुम्हें, तुम्हारे ज्ञान का 
लेकिन सच तो ये है कि 
ये भी तुम्हें गुरूवर ने दिया 
कहते हो पिता से, 
निभाई है सिर्फ जिम्मेदारी 
तो बताओ जरा
गर निभाई नहीं होती जिम्मेदारी 
फिर कौन हो तुम.......?

तुझे चाहा किसी और ने 
तुम्हारी चाहत कोई और है 
तुम्हारी हर जरूरत को जिसने पूरा किया 
आज वो तुम्हारा बोझ है 
क्या सच क्या झूठ खुदारा समझा मुझे 
सही बताओ उसके बगैर 
कौन हो तुम.......?

बारिश में कागज की नाव 
गर्मी में बर्फ के गोले 
सर्दी में वो स्वादिष्ट पकवान 
वो सरसों का साग 
वो मक्के की रोटी 
बनी तेरे लिए अन्नपूर्णा 
छोर कर अपनी चाहत 
तो बताओ मुझे 
उस माँ के बगैर 
कौन हो तुम.......?

क्या तुम्हें याद नहीं 
किस कद्र धूप ने जलाया 
काम में मालिक ने सताया 
घर को कैसे सजाया 
कैसे तेरा पहचान बनाया 
पिता से तुम हो 
तुमसे पिता नहीं 
फिर घमंड किस बात का 
किस बात की है साज़िश तुम्हारी 
कुर्बानी न दी होती तुम्हारे खातिर 
फिर कौन हो तुम.......?


मोहम्मद मिमशाद

Thursday, 23 February 2023

हँसी और आँसू

क्या ये सच है कि तू अकेले में रोता हैं 
फिर ये बता भीड़ में क्यों मुस्कराता हैं 
क्यों खुद को अकेला समझता है तू 
जब खुदा साथ होता है तेरे 
क्या गम है जिसको छिपाता है तू 
बता ए बन्दे, खुदा सब जनता है हाल को तेरे 

क्या खुशी क्या गम 
ये पहलू हैं एक ही सिक्के के 
कभी रो लेता हूँ, कभी मुस्कराता हूँ 
बेशक खुदा जनता है 
सब के हाल को पहचानता है 
जानता हूँ देगा, मुझे भी एक अवसर 
बस यही सोचता हूँ 
ऐ खुदा  तू इतना आजमाता क्यों है 

आज़माना उसकी भी मजबूरी है 
ये तेरे लिए ही है, क्या जरूरी है 
देखना चाहता है तेरे सब्र को 
बेसब्र को क्या ही मिलता है 
यों ही बर्बाद न कर उम्र को ऐ नौजवान 
तू कर्म कर फल की चिंता क्यों करता है 
देगा बेशक वो तुझे भी 
ज़रा इत्मीनान तो रख 
जब बनाया उसने जमीन - आसमाँ सब तेरे लिए 
फिर क्यों मायूस होता है एक छोटे से चीज के लिए 




                                                मोहम्मद मिमशाद 

Tuesday, 21 February 2023

घर की याद

आओ कुछ बात करे 
इस बारे मे, उस बारे मे 
जहां लोग रहते हैं 
जहां दुनिया बस्ती है 
हम किस रास्ते पर हैं 
किस मुकाम को ढूंढ रहे हैं 
बस अकेले हैं 
अकेले चल रहे हैं 
घर से निकला अकेले था 
मुकाम तक पहुंचना भी अकेले है 
सफर भी तन्हा है 
फिर कहाँ दुनिया है !!
घर से निकले थे सपने की खातिर 
पता नहीं चला घर ही सपना बन गया कब आखिर 
बाते हम यों करते हैं कि हम कुछ कर जाएंगे 
माँ बाप भाई बहन घर दुनिया ये सब कब सोचते हैं 
आज, बन ही गए कुछ आखिर 
घमंड सब को है इस बात का 
लेकिन क्या ये सच है 
कि बन गए हम सहारा अपने घर का ??


                                                   मोहम्मद मिमशाद

नाउम्मीद

मैंने एक कहानी उस दिन लिखा था  जब शायद मैंने उनके आंसुओ के दरिया में अपना चेहरा देखा था उनकी आंसु एक अलग कहानी बता रही थी  शायद कहीं वो मुझे...